Jaishankar Prasad Biography In Hindi - जयशंकर प्रसाद की जीवनी
नाम :- जयशंकर प्रसाद
जन्म :- 30 जनवरी 1889 (वाराणसी, उत्तर प्रदेश)
पिता का नाम :- श्री देवी प्रसाद साहु
काल :- छायावादी युग
भाषा :- हिन्दी
शैली :- भावात्मक, वर्णात्मक
मृत्यु :- 15 नवम्बर 1937
मृत्यु स्थान :- (काशी)
Jaishankar Prasad छायावादी युग के महान लेखक थे | बाबू Jaishankar Prasad हिन्दी के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं | ये एक युग प्रवर्तक लेखक थे | जिन्होंने एक साथ कविता, नाटक, कहानी और उपन्यास के क्षेत्र में हिन्दी को गौरन्वित किया | कवि के रुप में वह सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, सुमित्रानन्दन पन्त, महादेवी वर्मा के साथ छायावाद के चौथे स्तम्भ के रूप में प्रतिष्ठित हुए | इन्होंने अपनी रचनाओं में नाटक सबसे ज्यादा लिखे हैं | युग प्रवर्तक नाटककार थे | इन्हें “कामायनी” पर मंगला प्रसाद पारितोषिक प्राप्त हुआ | इन्होंने अपना 48 वर्षों के छोटे जीवन में ही हिन्दी की सभी विद्याओं पर रचनाएं लिखी |
Jaishankar Prasad शतरंज के खिलाड़ी भी थे | बग बगीचे और भोजन बनाने के शौकीन थे | वे गम्भीर प्रकृति के व्यक्ति थे | वे ‘नागरी प्रचारिणी’ सभा के उपाध्यक्ष भी थे | क्षय रोग से 15 नवम्बर 1937 को मात्र 47 वर्ष की उम्र में इनकी मृत्यु काशी में हो गयी |
Jaishankar Prasad Compositions
काव्य- कानन कुसुम, महाराणा का महत्व, झरना, लहर, आंसू, कामायनी प्रेम पथिक |
उपन्यास- कंकाल, तितली, इरावती (अपूर्ण उपन्यास) |
Jaishankar Prasad Story
छाया, प्रतिध्वनि, आंधी, इंद्रजाल, आकाश-दीप, पुरस्कार, ममता |
एकांकी- प्रायश्चित, परिणय |
Jaishankar Prasad Drama
स्कन्दगुप्त, चन्द्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, जनमेजय का नाग यज्ञ, राज्यश्री, कामना एक घूंट, करुणालय, विशाख, अजातशत्रु |
Jaishankar Prasad Eassy
सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य, प्राचीन आर्यावर्त और उसका प्रथम सम्राट, काव्य कला |
Jaishankar Prasad Literary services
Jaishankar Prasad बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे | वे महान कवि, सफल नाटककार, श्रेष्ठ उपन्यासकार, कुशल कहानीकार, एंव गम्भीर निबन्धकार थे | इन्होने हिन्दी के श्रेष्ठ ग्रंथों की रचना कर हिन्दी साहित्य को समृद्ध बना दिया |
Jaishankar Prasad Biography
Jaishankar Prasad का जन्म 30 जनवरी 1889 ई० में हुआ था | इनका जन्म काशी के एक प्रतिष्ठित सुंधनी साहू नाम के प्रसिद्ध वैश्य परिवार में हुआ था | इनके पितामह ‘शिवरतन साहू’ दान देने में प्रसिद्ध थे व इनके पिता ‘बापू देवी प्रसाद’ कलाकारों का आदर करने के लिए विख्यात थे | इनके बाल्यकाल में ही इनके पिता जी का देहांत हो गया | किशोरावस्था से पूर्व इनकी माता और बड़े भाई का देहांत हो गया | जिसके कारण 17 वर्ष की उम्र में ही जयशंकर प्रसाद पर अनेक जिम्मेदारियां आ गयी |
घर में सहारे के रूप में केवल विधवा भाभी और परिवार से सम्बद्ध अन्य लोगों ने इनकी सम्पत्ति हड़पने का षड्यंत्र रचा, परिणाम स्वरुप इन्होंने विद्यालय की शिक्षा छोड़ दी और घर में ही अंग्रेजी, हिन्दी, बंगला, उर्दू, फारसी, संस्कृत आदि भाषाओं का गहन अध्यन किया | ये साहित्यिक प्रवृति के व्यक्ति थे, शिव के उपासक थे और मांस मदिरा से दूर रहते थे | इन्होंने अपने साहित्य साधना से हिन्दी को अनेक उच्चकोटि के ग्रन्थ-रत्न प्रदान किए | इनके गुरुओं में रसमय सिद्ध की भी चर्चा की जाती है | इन्होंने वेद, इतिहास, पुराण व साहित्य का गहन अध्ययन किया था |