2. बेखौफ अंदाज के लिए जाने जाने वाले चंद्रशेखर सिर्फ 14 साल की उम्र में 1921 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन से जुड़ गए थे।
3. गांधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन को अचानक बंद कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया और वे हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गए।
4. स्वतंत्रता संग्राम के महान नायकों मे से एक चंद्रशेखर आजाद का जन्म मध्य प्रदेश के झाबुआ में हुआ था। जहां आजाद का जन्म हुआ उस जगह को अब आजादनगर नाम से जाना जाता है।
5. आजाद छोटी उम्र में ही आजादी की लड़ाई उतर गए थे। उन्होंने बचपन में ही निशानेबाजी सीख ली थी।
6. अपनी पहली सजा में आजाद को 15 कोड़े पड़े। आजाद की देशभक्ति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हर कोड़े पर उन्होंने वंदे मातरम के साथ-साथ महात्मा गांधी की जय के नारे लगाए। इसके बाद से ही उन्हें सार्वजनिक रूप से 'आजाद' पुकारा जाने लगा।
7. उनकी पहली सजा मिलने का किस्सा भी दिलचस्प है। कोर्ट में जब उनसे उनके बारे में जानकारी मांगी गई तो उन्होंने ऐसा जबाव दिया जिससे वहां बैठे अंग्रेज सकते में आ गए। उन्होंने अपना नाम आजाद बताया। पिता का नाम स्वतंत्रता और निवास स्थान के नाम पर जेल का नाम लिया।
8. चौरा-चौरी घटना के बाद जब महात्मा गांधी ने अपना आंदोलन वापस ले लिया तो आजाद समेत कई युवा क्रांतिकारी कांग्रेस ले अलग हो गए और अपना संगठन बनाया। संगठन का नाम हिन्दुस्तानी प्रजातान्त्रिक संघ रखा गया। इस संगठन में देश के नवयुवक क्रांतिकारियों को जोड़ा गया।
9. आजाद ने उसके बाद अन्य क्रांन्तिकारियों को लेकर सरकारी खजानों को लूटना शुरू कर दिया। अंग्रेजों ने भारत की जनता पर अत्याचार कर उनसे जो धन लूटा था वह इन्हीं खजानों में रखा जाता था। रामप्रसाद बिस्मिल और चंद्रशेखर आजाद ने साथी क्रांतिकारियों के साथ मिलकर ब्रिटिश खजाना लूटने और हथियार खरीदने के लिए ऐतिहासिक काकोरी ट्रेन डकैती को अंजाम दिया। इस घटना ने ब्रिटिश सरकार को हिलाकर रख दिया था।
10. लाला लाजपत राय की मौत का बदला आजाद ने ही लिया था। आजाद ने लाहौर में अंग्रेजी पुलिस अधिकारी सॉन्डर्स को गोली से उड़ा दिया था। इस कांड से अंग्रेजी सरकार सकते में आ गई। आजाद यही नहीं रुके उन्होंने लाहौर की दिवारों पर खुलेआम परचे भी चिपकाए। परचों पर लिखा था कि लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला ले लिया गया है।
11. आजाद ने कहा था कि वह आजाद हैं और आजाद ही रहेंगे। वह कहते थे कि उन्हें अंग्रेजी सरकार जिंदा रहते कभी पकड़ नहीं सकती और न ही गोली मार सकती है।
12. 27 फरवरी 1931 को अंग्रेजी पुलिस ने इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में आजाद को चारों तरफ से घेर लिया। अंग्रेजों की कई टीमें पार्क में आ गई। आजाद ने 20 मिनट तक पुलिस वालों से अकेले ही लौहा लिया। इस दौरान उन्होंने अपने साथियों को वहां से सुरक्षित बाहर भी निकाल दिया। जब उनके पास बस एक गोली बची तो उन्होंने उसे खुद को मार ली। क्योंकि उन्होंने संकल्प लिया था कि उन्हें कभी भी अंग्रेजी पुलिस जिंदा नहीं पकड़ सकती।
13. जब आजाद ने गोली मारी तो भी अंग्रेजी पुलिस की उनके पास जाने की हिम्मत नहीं हुई। काफी देर बाद जब वहां से गोली नहीं चली तो अंग्रेजो थोड़ा आगे बढ़े। उनकी नजर आजाद के मृत शरीर पर पड़ी तो उन्हें होश में होश आया। अपनी अंतिम लड़ाई में आजाद ने अंग्रेजों की पूरी टीम के छक्के छुड़ा दिए थे। जिस पार्क में चंद्रशेखर आजाद हमेशा के लिए आजाद हो गए आज उस पार्क को चंद्रशेखर आजाद पार्क के नाम से जाना जाता है।